जूते चोरी की कहानी
जूते चुराने की रसम का अपना ही मज़ा होता है।
पूर्वा, आस्था, शिव्या और मेरी अन्य सालियां हम लोगों के खाना खाते ही मेरे से जूते मांगने आई। अब जूते ऐसे ही थोड़े दे दिए जाते हैं। तो उन से कहा कि जूते तो चुराने होते हैं। ऐसे मांगने पे थोड़े ही मिलते हैं। कुछ मेहनत तो करनी पड़ती है ना। तो बस, इतना कहना था की सब लडकियां जुट गयी। सभी मेरे पैरों की तरफ बड़ी। उन का मेरी ओर (मतलब मेरे पैरों कि ओर) बढ़ना था कि मैं कुर्सी से नीचे खिसकता गया। कुछ देर में मैं अपनी पीठ पे बैठा था।
सभी लोग हंसने लगे। वजिभ है। सेहरा पहने दूल्हा अपने टेबल के नीचे छिपा जा रह है। और लडकियां उस के चारों ओर मंडरा रही हैं - उस के पैर पकड़ने को बिलकुल तैयार।
खैर, आख़िर में, आस्था और शिव्या दोनो टेबल के नीचे गई और जूते उतारने लगी। अब मैं कहॉ कम था। मैं अपने पैर हिलाने लगा। ज़ोर ज़ोर से। तो मेरे पैर भी उन के हाथों में ना आएं।
इन सभी बधायों को पार कर के, आखिरकार दोनो कन्याएं मेरे जूते उतारने में सफल हुई।
मेरे जूते गायब कर दिए गए। अब मंडप तक जाना था। लेकिन इन कन्यायों को विश्वास नहीं हो रहा था कि मैं जूते वापिस उन्हें दे दूंगा। अंत में मैं अजय के जूते पहन कि मंडप तक पहुँचा।
फेरों के बाद सगन देने पे मुझे मेरे जूते वापिस दिए गए। और ऐसे वैसे नहीं, बहुत प्यार से पहनाये गए।
इसी बहाने जीजा अपनी सालियों को ढंग से पहचान पाता है। साली को वैसे ही आधी घरवाली कहा जाता है ना :-)।
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